Photo by Angelo Abear on Unsplash वो क्षण गया
उसे मैंने जाते देखा
किसी गुज़रती तेज रफ़्तार गाड़ी की तरह।
दिसंबर के कुहासे में
वो जगमगाया,
इस सिहरती शाम
के पिघलते अंधियारे में
जैसे उसने इशारा किया हो —
‘याद करोगे मुझे?’
लेकिन मैंने उसे पुकारा नहीं।
वो क्षण गया,
किसी चाह की लकीर भी
उसके पीछे नहीं।