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Screaming into the void.
Stories, poetry, podcast, and artwork. A blog by Saurabh Rai.
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ज़िंदगी
धुएं सी उठती है,
आकाश की तरफ
बढ़ती उंगलियों के जैसे,
कोई रूप,
आकार इसका
नहीं पता,
जाएगी किस ओर?
कोई हवा का झोंका
मोड़ दे इसका रुख
और फिर
वही बन जाए इसका रास्ता!
और फिर
धुआँ कितनी देर
ठहरता है हवा में?
इसे उन्मुक्तता माने, या पीड़ा
ये चयन है उसका,
लेकिन स्वभाव यही है
कि वो उठे और लहराए
और फिर अदृश्य हो जाए।
न सोचे कब, क्यों, कहाँ, कैसे, किसलिए
जिए, फिर खो जाए, और
रह जाने दे
नीचे पड़ी
सपनों की राख
और उनमें दबी कुछ चिंगारियाँ,
और रह जाने दे
वो सम्मानित गंभीरता
जिसे चेहरों पे चिपकाएं
एक सी सूरत वाले लोग
बहुत ही भद्दे नजर आते हैं।